मेघा पाटकर की सजा निरस्ती के लिए युवाम रतलाम द्वारा राष्ट्रपति के नाम दिया ज्ञापन,

रतलाम,4.07.2024(प्रारम्भ दुबे),अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता मेघा पाटकर की सजा को निरस्त करने हेतु युवाम संचालक पारस सकलेचा दादा व युवाम टीम रतलाम द्वारा राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन अतिरिक्त कलेक्टर शालिनी श्रीवास्तव को दिया गया तथा तथा दिए गए ज्ञापन में महामहिम राष्ट्रपति महोदया से अनुरोध किया गया कि महामहिम जी,मेघा पाटकर को दी गई सजा को रद्द करने के लिए त्वरित हस्तक्षेप कर शासन को निर्देशित करें
इस अवसर पर युवाम संचालक पारस सकलेचा , प्रसिद्ध पर्यावरणविद खुशाल सिंह पुरोहित , सह संचालक धर्मेंद्र मंडवारिया , पीयूष बाफना , नवीन मेहता , दिनेश कटारिया , सुमित पोरवाल , मनीष पांचाल आदि उपस्थित थे ।
यह पूरा मामला -:
श्री वी.के. सक्सेना गुजरात के जे.के. सीमेंट और अडानी की संयुक्त परियोजना धोलेरा परियोजना के पदाधिकारी 1990 सें बने थे नर्मदा बचाओ आंदोलन ने जब 1991 से घाटी के हजारो आदिवासी,किसान,दलित,मजूदर,मछुआरे,व्यापारी, विस्थापितों के अधिकारों के लिए कानूनी और अहिंसक संघर्ष किया, तभी से सक्सेना जी ने आंदोलन”की खिलाफत शुरू कर दी थी आंदोलन विस्थापितों के संपूर्ण पुनर्वास के लिए चला था, गुजरात की कंपनियों को पानी देने के विरोध में नही था अरथात विस्थापितों के संपूर्ण पुनर्वास और उसके बिना किसी का घर, खेत डुबने न देने के कानून, नीति तथा न्यायालयीन फैसलो के पालन के पक्ष में आंदोलन चलाया गया था,जो तीन राज्यों के 244 गांव और एक नगर के 50 हजार से अधिक परिवारों के पुर्नवास के लिए जरूरी था।
अभी तक जो भी अधिकार विस्थापित परिवारों को मिल पाए हैं वह सत्याग्रह और संघर्ष के कारण ही संभव हो पाया हैं. सर्वाच्च न्यायालय ने तथ्यों, कानून के अधिकार और धरातल की सच्चाई जानकर बांध रोकने का आदेश दिया तो भी सक्सेना जी ने आंदोलन को दोषी ठहराकर मेधा पाटकर पर गंभीर आरोप लगाए और कई टि्णियां की जैसा कि “मेधा पाटकर को फॉसी दो,होलिका मे मेघा पाटकर का दहन करो आदि वक्तव्य मीडिया में मेधा पाटकर को बदनाम करने की नीयत से छपावाएं गए।
सक्सेना जी ने सर्वोच्च न्यायालय में नर्मदा बचाओ आंदोलन को विदेशी पैसो से चलने वाली संस्था बताकर पीआईएल दाखिल की, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई 2007 में खारिज करते हुए यह कहा कि यह ‘पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन” नहीं प्राइवेट इंटरेस्ट लिटिगेशन’ है न्यायालय द्वारा 5000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया,
साबरमती आश्रम में गुजरात में दंगो के बाद शांति बैठक का निमंत्रण मिलने पर मेधा पाटकर जब आश्रम में पहुँची तब उन पर हमला किया गया जिसमें वी.के.सक्सेना शामिल थे जिसके कई गवाह है गुजरात शासन ने वी.के सक्सेना एवं अन्य तीन राजनीतिक व्यक्तियों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज किया जिसमें 2002 से आजतक फैसला नही हो पाया हैं.लेफ्टिनेंट गवर्नर होने से उन्हें किसी अपराधी प्रकरण से छुटकारा नही मिल सकता है, यह निर्णय साकेत कोर्ट, दिल्ली और अहमदाबाद के मेट्रो पॉलिटियन मजिस्ट्रेट दोनों ने संवैधानिक प्रावधानों के आधार पर किया हैं. यह प्रकरण अहमदाबाद होई कोर्ट में लंबित हैं,
सक्सेना जी ने मेधा पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन पर लाल भाई ग्रुप कंपनी के नाम फर्जी चेक “‘ के मामले में, धन्यवाद का पत्र और रसीद लेकर इंडियन एक्सप्रेस में विज्ञापन देकर हवाला व्यवहार का झूठा आरोप लगाया था. इस मामले मे मेधा पाटकर जी की ओर से मानहानि का प्रकरण 2000 में आज तक साकेत कोर्ट, दिल्ली में लंबित हैं एक फर्जी मेल के आधार पर सक्सेना जी ने मानहांनि का प्रकरण 2001 में दर्ज किया, अिसमें मेघा पाटकर को 24 मई 2024 को साकेत कोर्ट के मेट्रो पॉलिटियन मजिस्ट्रेट द्वारा दोषी करार देकर 1 जुलाई को 5 महिने के कारावास तथा 10 लाख रुपए की मुआवजा राशि जुर्मना भरने की सजा सुनाई गई यह विवादित है कि मेधा पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन आदिवासीयों किसानों,मजदूरों आदि सभी अन्यायग्रस्तों विस्थापितो के साथ संघर्ष और निर्माण के कार्य में सक्रिय रहा हैं. विकास की अवधारणा विनाश, विषमतावादी नहीं, समता, न्याय और निरंतरता के मूल्य मानकर हो, ताकि “‘त्याग’ के नाम पर प्रकृति निर्भर और श्रमिक परिवारों को अत्याचार भुगतना न पड़े, यही उनकी मान्यता रही है आज भारत और दुनिया जो जलवायु परिवर्तन भुगत रही हैं और देश में गत 76 वर्षों सेविस्थापितों का सम्पर्ण पुनर्वास नही किया गया हैं।
नोट-: क्या विकास संबंधी सवाल उठाना और संवाद करना न्याय संगत नही हैं ? अहिसा और सत्य के आधार पर चलते नर्मदा घाटी के कार्य को विकास विरोधी मानना क्या गलत नहीं हैं ? ,